देशभक्ति बोले तो ‘गुनाह’? कब से राष्ट्रवाद हो गया कंट्रोवर्सी!

शालिनी तिवारी
शालिनी तिवारी

“भारत माता की जय” बोलना, तिरंगा लहराना या सेना की तारीफ करना—कभी ये बातें देशभक्ति की पहचान मानी जाती थीं। लेकिन आज, अगर कोई खुलकर राष्ट्रवाद की बात करता है तो उसे अक्सर “जाहिर एजेंडा”, “प्रोपेगेंडा” या “ध्रुवीकरण” के आरोपों से घेर लिया जाता है।

तो सवाल ये है: क्या भारत में राष्ट्रवाद की बात करना अब गुनाह बन गया है?

राष्ट्रवाद बनाम अंधराष्ट्रवाद: फर्क समझना ज़रूरी है

राष्ट्रवाद यानी अपनी मातृभूमि से प्रेम, उसका सम्मान और समृद्धि के लिए काम करना। अंधराष्ट्रवाद में तर्क, आलोचना और बहस के लिए जगह नहीं होती—यह हर असहमति को ‘देशद्रोह’ कहकर खारिज कर देता है। लेकिन आज के समय में ये दोनों बातें इतनी उलझ चुकी हैं कि राष्ट्रवाद की बात करते ही आपकी नीयत पर सवाल उठते हैं।

राजनीति का रंग और मीडिया की आग

राजनीति में राष्ट्रवाद अब वोट बैंक टूल बन चुका है।

  • एक पक्ष कहता है: “Desh ke liye tough stand ज़रूरी है”

  • दूसरा पक्ष कहता है: “ये सब polarisation है”

मीडिया डिबेट्स में “राष्ट्रवादी” कहे जाने पर कोई गर्व करता है तो कोई उसे ट्रोल कर देता है।

कुछ बोलो तो कहते हैं – “भक्त हो”,
चुप रहो तो कहते हैं – “देश की परवाह नहीं है।”

आलोचना = देशद्रोह?

क्या सरकार की आलोचना करना राष्ट्रद्रोह है?
बिल्कुल नहीं। एक सच्चा राष्ट्रवादी वही होता है जो देश के गलत सिस्टम, नीति या प्रशासन की आलोचना करके सुधार की बात करे।

लेकिन ट्रेंड ये हो गया है कि अगर कोई सवाल पूछे, तो उसे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’, ‘Urban Naxal’ या ‘देशद्रोही’ कह दिया जाता है।

डिबेट या डिजिटल महायुद्ध?

आज ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर ‘राष्ट्रवाद’ एक हॉट टॉपिक है—लेकिन healthy debate की जगह हेट, ट्रोलिंग और रिपोर्टिंग ज़्यादा होती है।

देश के लिए कुछ कहो तो “TRP के लिए बोल रहे हो” कुछ न कहो तो “फेक लिबरल” का तमगा मिल जाता है।

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